
What is gi tags | gi tags
GI( geographical indication) भौगोलिक सांकेतक
हमारे देश को पूरे विश्व में अपनी विविधता के लिए जाना जाता हैं। यहां हर 50 मील पर भाषा बदल जाती है ,पहनावा बदल जाता हैं, खान पान बदल जाता हैं और इसी विविधता को जीवित रखने के लिए सरकार सदैव प्रयासरत रहती हैं।
हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का भी स्वपन था की भारत में कुटीर उद्योगों को बढ़ावा मिले और इस देश की विविधता , संस्कृति, सभ्यता हमेशा जीवित रहें और इसकी कोई क्षति ना ही किसी भी युग में और इसी की ओर कार्य करते हुए भारत सरकार द्वारा एक संस्था Controller General of Patents, Designs and Trade Marks (CGPDTM) बनाई गई जो किसी भौगोलिक स्थान के विशेष उत्पादन को आवेदन द्वारा मांगे जाने पर एक टैग प्रदान करती हैं, जिसे Geographical indication tag या भौगोलिक संकेतक कहते हैं।
GI टैग क्या हैं ? What is gi tags
GI tag उत्पादों को दिए जाने वाला प्रतीक चिन्ह हैं जो उन्हे उनके विशेष भौगोलिक उत्पति , विशेष गुणवत्ता और पहचान के आधार पर दिया जाता हैं। जिससे उनकी विशिष्ट पहचान बनी रही और उस स्थान का नाम भी इस उत्पाद के कारण बना रहे ।
GI टैग देने का कारण
यह जी आई टैग पेटेंट की तरह ही हैं जिस उत्पाद को तथा संबंधित उत्पाद निर्माता को यह टैग मिल जाता है उसके अतिरिक्त कोई और वह प्रोडक्ट उत्पादित नही कर सकता हैं जैसे बनारसी साड़ी बनारस की पहचान और उत्पति है यदि ये अधिक हाथो में गया तो इसकी विशिष्टता समाप्त हो जायेगी इसलिए ऐसे टैग्स आवश्यक हैं।
GI टैग का महत्व
हमारी संस्कृति हमारी विरासत GI tag इस पंक्ति को सार्थक बनाता हैं। जी आई टैग सदियों से चले आ रहे परंपरागत तरीकों , ज्ञान , विधि को जीवित रखता हैं। GI tag उस स्थान और उत्पाद की पहचान बढ़ाता हैं और उसकी ख्याति पूरे विश्व में फैलाता है। जिससे अनछुयी जनता भी उससे परिचित हो जाती हैं और इसी कारण से यह पर्यटन को भी बढ़ावा मिलता हैं।
साथ ही यह GI tag उस उत्पादन से संबंधित लोगों को आर्थिक रूप से भी सक्षम बनाता है,उनके जीवन स्तर में सुधार आता हैं ।
आज GI tag के कारण कही जनजाति समूह स्वयं को पिछड़ा ना मानकर स्वयं को भारतीय संस्कृति का आधार मानते हैं। जिससे उनका लगाव सदैव अपनी संस्कृति की ओर बना रहता है और यही भारत की छवि में चार चांद लगाता हैं।
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Gi टैग का इतिहास
भारत सरकार द्वारा विशेष उत्पादों के सरक्षण के लिए संसद ने G.I. tag( registration and protection) act 1999 को पारित किया
जिसे वर्ष 2003 में लागू किया गया व controller general of patents, Designs and trade marks संस्था की स्थापना की गई , तत्पश्चात इस संस्था ने वर्ष 2004 में सर्वप्रथम दार्जिलिंग की चाय को GI tag प्रदान किया। GI tag पाने वाला यह पहला उत्पाद था। इसके पश्चात निरंतर यह संस्था लगातार उत्पादों को GI tag प्रदान करती आ रही हैं। हाल ही में nicobari hodi craft को GI tag प्रदान किया गया।
कैसे प्राप्त करें Gi tag
GI tag प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि आप जिस वस्तु के लिए GI tag की मांग कर रहे वो एक विशिष्ट उत्पाद हो , उसका उत्पादन तरीका पर्यावरण हितैषी हो तथा वह विशेष पहचान रखता हो। यदि यह सारी शर्ते वह उत्पादन कर्ता पूरी करता हो तो वह चेन्नई स्तिथ CGPDTM संस्था में आवेदन दे सकता हैं.
फिर वह संस्था पूर्ण तस्सली और जांच पड़ताल के बाद उस उत्पाद को GI tag दे देती हैं।
GI tag की अवधि – संस्था द्वारा GI tag केवल 10 वर्षो के लिए दिया जाता हैं,तत्पश्चात संस्था यह जांच करती है कि क्या वो उत्पाद अभी भी विशिष्टता धारण किए हुए है तो इस अवधि को 10 वर्ष के लिए ओर बढ़ा देती हैं।
किन वस्तुओं पर मिलता हैं GI tag
GI tag विशेषकर फसल उत्पादो को, हस्तशील उत्पादों को और विशेष खाद्य पदार्थों को एवम वस्तुओ को मिलता है।
Gi tag प्राप्त उत्पादों की सूची
भारत के प्रत्येक राज्य में ऐसे कही उत्पाद है जिन्हे GI tag मिला हैं। सबसे अधिक GI tag प्राप्त वस्तुएं कर्नाटक के पास है जिनकी संख्या है 42।
GI tag सूची –
कश्मीर केसर,जम्मू और कश्मीर
मणिपुरी काला चावल,मणिपुर
कड़कनाथ मुर्गा,मध्यप्रदेश
HAPUS आम,महाराष्ट्र
कंधमाल हल्दी,ओडिशा
चाक हाओ चावल,मणिपुर
रसोगुल्ला पश्चिम,बंगाल
बनारसी साड़ी,उत्तरप्रदेश
मधुबनी पेंटिंग,बिहार
बस्तर लोह शिल्प,छत्तीसगढ़
बस्तर लकड़ी शिल्प,छत्तीसगढ़
खम्बात के सुलेमानी पत्थर,गुजरात
कच्छ की कढ़ाई,गुजरात
सिरसी सुपारी,कर्नाटक
अपेमिडी आम,कर्नाटक।