Emperor Ashoka biography in hindi

5/5 - (3 votes)
Emperor ashoka in hindi

Emperor Ashoka| Emperor ashoka in hindi

Introduction-Emperor ashoka

सम्राट अशोक की महानता के कारण जानते हैं।

सम्राट अशोक विश्व के सबसे प्रसिद्ध एवं शक्तिशाली मौर्य राजवंश के सम्राट थे। सम्राट अशोक का पूरा नाम देवानांप्रिय अशोक मौर्य था। सम्राट अशोक की गिनती विश्व के महानतम सम्राट गिना जाता है।

जीवन‌ परिचय

मौर्य साम्राज्य के स्थापनापक चंद्रगुप्त मौर्य की मृत्यु के बाद बाद बिंदुसार शासक बने और बिंदुसार की मौत के बाद उनके पुत्र अशोक 273 ईसा पूर्व में मगध साम्राज्य की गद्दी पर बैठा। पुराणों में अशोक को अशोकवर्धन कहा जाता है।

सम्राट अशोक की मां का नाम सुभद्रांगी और पिता का नाम बिंदुसार था तथा सम्राट अशोक पत्नी का नाम महादेवी थी,जिससे उन्हें महेंद्र नामक पुत्र तथा संघमित्रा नामक पुत्री हुई।

सम्राट अशोक ने 261 ईसा पूर्व में कलिंग पर आक्रमण किया था और इस युद्ध में अशोक की विजय हुई परंतु भयंकर युद्ध दृश्य के कारण अशोक का हृदय परिवर्तन हो गया। शुरूआत में अशोक ब्राह्मण धर्म के पालक और शिवभक्ति के उपासक थे,पर कलिंग युद्ध के पश्चात बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर वह बौद्ध धर्मावलंबी बन गया।

अशोक की महानता

अशोक की महानता इस तथ्य में है कि आमतौर पर विजयी अपने पराजित शत्रु पर हर प्रकार का दबाव और क्रूरता प्रदर्शित करता है, पर अशोक अपनी विजय का गुणगान नहीं करता बल्कि विजय के क्षण में भी पश्चाताप से भर उठता है

और शान्ति व धर्म के रास्ते पर चलने का संकल्प लेता है। इस प्रकार वह विजय की परिभाषा और अवधारणा को नया अर्थ प्रदान करता है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी के शब्दों में “अशोक ने इतिहास के विजय नायकों और राजाओं से बिल्कुल अलग, युद्ध की नीति को त्यागने का निर्णय तब लिया, जब वह विजय के शीर्ष पर था।”

इतिहासविद राधाकुमुद मुखर्जी भी कहते हैं कि “वैसे तो इस प्रकार की भावना अपने आप में अनूठी है, पर अशोक की महानता इससे भी परिलक्षित होती है कि विश्व इतिहास में दूसरा कोई सम्राट नहीं हुआ, जिसने ऐसा कुछ कहा हो। शस्त्रों और युद्ध के स्थान पर सत्य और अहिंसा से विजय के महत्व को अशोक से सीखना चाहिए।

सम्राट अशोक और बौद्ध धर्म

बौद्ध ग्रन्थों के अनुसार कलिंग युद्ध के दौरान व्यापक हिंसा के बाद अशोक का मन पश्चाताप से भर उठा। उसने बौद्ध धर्म को अपनाया और उसके प्रचार-प्रसार में जीवन समर्पित कर दिया। उसने देश के विभिन्न हिस्सों में दूर-दूर तक पत्थरों पर अभिलेख खुदवाये और उनमें दया, प्रेम, अहिंसा और भाईचारे पर जोर दिया। यह लेख दो तरह के हैं।

प्रस्तर शिलाखण्डों और दूसरे पॉलिशदार शीर्षयुक्त स्तम्भों पर। शिलालेख भी दो तरह के हैं एक लघु शिलालेख और द्वितीय प्रधान शिलालेख। यह अधिकतर ब्राह्मी लिपि में हैं।

इनको लेकर भी विवाद कम नहीं है। कभी कहा जाता है कि अशोक ने बौद्ध धर्म का नहीं, सिर्फ मानवीय मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया है। यहाँ तक कि उसका नाम भी विवादों के घेरे में रहा है क्योंकि अभिलेखों में लगभग हर जगह उसके लिए ‘देवानामपिय पियदसी’ का उल्लेख हुआ है। बहुत बाद के मास्की (कर्नाटक) अभिलेख में पहली बार अशोक का उल्लेख आता है।

इस सबके बावजूद यह अभिलेख अत्यन्त महत्वपूर्ण है और इनसे अशोक की ‘धम्म विजय’ के साथ-साथ उसकी निजी जिन्दगी पर भी प्रकाश पड़ता है।

Also Read: Sarojini Naidu hindi

सम्राट अशोक का धम्म

सम्राट अशोक ने प्रजा की उन्नति के लिए जिन प्रमुख सिद्धांतों को अभिलेखों में प्रस्तुत किया था उसे धम्म कहते है। अशोक का धम्म पृथ्वी के सभी धर्मों का सार था।

अशोक के अपने दूसरे और सातवे अभिलेख में धम्म की परिभाषा को‌ दिया गया है। धम्म से तात्पर्य यह है कि पाप कर्मों से दूर, दया-दान और विश्व कल्याण की कामना से हैं।

अशोक का मुख्य राजधर्म बौद्ध धर्म था। अशोक ने बारहवींव शिलालेख में यह बताया कि हमें अपने धर्म का आदर करना चाहिए और दूसरे धर्म की कभी निंदा नहीं करनी चाहिए। अशोक ने धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए महामात्रो की नियुक्ति किया। कौटिल्य अथवा चाणक्य द्वारा रचित पुस्तक अर्थशास्त्र में उच्चतर अधिकारी के रूप में तीर्थ का भी उल्लेख मिलता है,इसे हीं महामात्र भी कहते थे। इनकी कुल संख्या 18 थी।

अशोक के धम्म का प्रचार पाली भाषा में किया गया। तेरहवें शिलालेख से अशोक के धर्म की प्रचार की जानकारी भी मिलती है। श्रीलंका में बौद्ध धर्म का प्रचार अशोक के पुत्र महेंद्र और उनकी पुत्री संघमित्रा ने किया था तथा शासक तिस्स को भी दीक्षित किया था। नेपाल में बौद्ध धर्म का प्रचार चारुमती ने किया। अशोक भारतवर्ष के प्रथम शासक थे,जिन्होंने अपने अभिलेख के माध्यम से जनता को संबोधित किया। इसलिए अशोक को महान कहा जाता हैं।

Leave a Comment