The indian freedom fighters in hindi

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the indian freedom fighters | the indian freedom fighters in hindi

Introduction

भारत के आदर्श स्वतंत्रता संग्राम के वीर सेनानी

भारत कोई भूमि का टुकड़ा नही बल्कि जीता जागता एक राष्ट्रपुरुष है। हमारा देश भारत जिसकी भूमि पर कही शुरवीरो ने जन्म लिया। और वो देश के के लिए बलिदान दे गए। जो देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए कही संदेश छोड़ गए है और सत्य, अहिंसा, परोपकारिता, सत्यनिष्ठा , बलिदान जैसे गुणों को भारत का पर्यायवाची बना गए।

महात्मा गांधी, राजाराम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर जैसे लोग देश से कुरीतियों को हटाकर देश को इनसे भी स्वतंत्र करवाना चाहते थे और वह इस कार्य में सफल भी हुए। वहीं लोकमान्य तिलक, भगत सिंह, रानी लक्ष्मी बाई स्वराज्य की भावना में विश्वास रखते थे।

और मानते थे की शोषक ब्रिटिशों के भारत छोड़ने पर ही भारत प्रगति की राह पर आगे बढ़ पाएगा। और वो अपने प्राण न्यौछावर कर सदैव के लिए अमर हो गए और देश को स्वाभिमानी होने का संदेश देकर अलविदा कह गए।

आज हम ऐसे ही कुछ महान व्यक्तियों के बलिदानों और योगदानों पर चर्चा करेंगे।

रानी लक्ष्मीबाई

वर्ष 1848 में लॉर्ड डलहौजी गवर्नर जनरल बनकर भारत आया। उस भारत का बहुत बड़ा भाग अंग्रेजी हुकूमत के अधीन था। जिसमे लॉर्ड वेलेजेली द्वारा बनाई गई सहायक संधि का प्रमुख योगदान था। डलहोजी ने गवर्नर बनने के बाद ही एक नई नीति लागू की जिसका नाम था *गोद निषेध नीति* या *व्यपगत नीति* इस नीति के तहत जिस राज्य में कोई पुत्र उत्तराधिकारी नही है वह राज्य स्वत: ही अंग्रेजो के अधीन आ जायेगा।

इस नीति से उन्होंने कही राज्य हड़प लिए। और ऐसा ही एक दिन झांसी को भी देखना पड़ा। जहां के सम्राट गंगाराम राव और रानी लक्ष्मी बाई का कोई अपना पुत्र नही था। लेकिन एक दत्तक पुत्र था (गोद लिया गया) जब राजा गंगाराम की मृत्यु हो जाती हैं। तो अंग्रेज वह राज्य हड़पने झांसी पहुंच जाते हैं। तब रानी अपना नारा देती हैं “में अपनी झांसी नही दूगी” और अपनी झांसी के लिए युद्ध लड़ती हैं।

महारानी लक्ष्मी बाई साहस से लड़ती हुए वीरगति को प्राप्त हो जाती हैं और झांसी भी हार जाती हैं लेकिन आने वाली पीढ़ियों के लिए यह संदेश छोड़ जाती है की चाहे कितना कठिन समय क्यों न आए जाए कभी भी अनीति ( गलत) का साथ नही देना चाहिए।

राजा राममोहन राय

अक्सर वे डाल ढूंढ बन जाया करती है जो नव कपोलो का स्वागत नही कर पाती हैं। राजा राम मोहन राय भारतीय पुन: जागरण के अग्रदूत माने जाते हैं। वे बड़े ही तर्कशील और वैज्ञानिक सोच वाले व्यक्ति थे। वे कर्मफल, अहिंसा वाद, नारी मुक्ति जैसी सोच का समर्थन करते थे।

वहीं वे सती प्रथा, बाल विवाह , विधवा प्रताडन जैसी कुरीतियों का पुर जोर विरोध करते थे।

वे धर्म विरोधी नही थे बल्कि एक धर्म सुधारक थे।उनका मानना था की किसी भी बात पर आंख मूंद कर विश्वास करने से पहले उसे तर्क की तराजू में तौल कर देखना चाहिए।

राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा, बाल विवाह को तर्क हीन और गलत बताया तथा इनका पुर जोर विरोध किया। राजा राम मोहन राय ने इन्ही बातो को देश में फेलाने के लिए एक संगठन की स्थापना की जिसका नाम था ब्रह्मा समाज। इस संघ में कही विद्वान शामिल हुए और उन्होंने कुरीतियों से लड़ने में राजा राम मोहन राय का साथ दिया।

राजा राम मोहन राय के प्रयासों से सती प्रथा का अंत हुआ। आज उन्ही के कारण हमारा समाज बाहरी आंक्रताओ के साथ साथ आंतरिक दुश्मनों ( कुरीतियों) से आजाद हो पाया है। ऐसे महान विभूति के बारे में देश के सभी लोगो को ज्ञात होना चाहिए। ताकि वो इन्हे पढ़े और जीवन में तर्कशील बने।

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वीर ऊधम सिंह

1899 में पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम में जन्मे, शहीद-ए-आज़म सरदार उधम सिंह के रूप में भी जाने जाते हैं, जिसका अर्थ है ‘महान शहीद’। उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी क्रांतिकारियों में से एक माना जाता है ।

13 अप्रैल 1919 को जलियाँवाला नरसंहार के बाद, वे क्रांतिकारी गतिविधियों और राजनीति में गहराई से शामिल हो गए ।औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने के उद्देश्य से प्रवासी भारतीयों को संगठित करने के लिए वे 1924 में ग़दर पार्टी में शामिल हुए और 1927 में, क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए सहयोगियों और हथियारों के साथ भारत लौटते समय, उन्हें अवैध रूप से आग्नेयास्त्र रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया

और पाँच साल की जेल की सजा सुनाई गई। 13 मार्च, 1940 को, सिंह ने कैक्सटन हिल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसाइटी की एक बैठक में जनरल डायर के बजाय माइकल ओ ड्वायर को गोली मार दी।जिस कारण उन्हें मौत की सजा सुनाई गई और 31 जुलाई, 1940 को लंदन के पेंटनविले जेल में फांसी दे दी गई।

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